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नाचीज़ का प्रकाशन कार्यालय जहाँ लेखन करता था |
यह "शकुन्तला प्रेस" का व्यक्तिगत "पुस्तकालय" है. जिसमें नियमित रूप से अध्ययन कर सकूँ. जैसे-हम अपने पुस्तकालय के लिए पुस्तक खरीद कर लाते हैं. उसी प्रकार से इसमें अपनी मर्जी से कुछ ब्लोगों और लिंकों का संकलन है. जैसे-हम अपने घर कोई वस्तु या किताब खरीदकर लाते हैं. उसको लेने और रखने का स्थान के साथ ही उसकी उपयोगिता पर विचार करते हैं, तब उसको घर लाते हैं. इसमें मैंने अपनी आवश्कता को महत्व दिया है. आप किसी प्रकार से नाराज न हो. मैंने केवल अपनी सुविधा के अनुसार ब्लोगों को अलग-अलग क्षेणी-क्षेणी देकर ब्लोगों के माध्यम से अपने ज्ञान में बढौतरी करने की कोशिश की, क्योंकि शुरु में ही सभी चीज़ों को व्यवस्थित कर लेने से, बाद में एक घंटा बचाया जा सकता है. इस लाइब्रेरी में आप भी लिंकों या ब्लोगों का अध्ययन कर सकते हैं.
"शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय" ब्लॉग की मूल भावना:-
दोस्तों, मेरे इस ब्लॉग "शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय" पर बहुत कम कहूँ या बिल्कुल भी पोस्ट प्रकाशित नहीं होगी. आप एक "पुस्तकालय" के रूप में ही प्राथिमकता दें. इस "पुस्तकालय" पर अभी शोध कार्य हो रहे है. इसका अवलोकन करके अपने अनुभवों/सुझाव का मुझे लाभ दें. फ़िलहाल इसमें अपने शोध कार्य में गुण-अवगुणों के आधार पर या यह कहूँ जितनी जानकारी हुई है. उसी आधार इसमें लिंक और ब्लोगों शामिल किया गया/जाएगा. "पुस्तकालय" और पाठकों की आवश्कता को देखते हुए इसमें अन्य ब्लॉग और लिंक शामिल भी करें जायेंगे. आप एक दो या ज्यादा गलतियों की मेरा ध्यान आकर्षित करें और कुछ ब्लॉग और लिंकों के विषय में बताकर योगदान करें. इसमें कुछ ऐसे लिंकों को शामिल करने का मन है. जो आम-आदमी कहूँ या एक गरीब पीड़ित व्यक्ति को अगर वो लिंक मिल जाता है. तब उसका जीवन या उसकी परेशानियां कम हो सकें. जैसे-आज से लगभग एक साल पहले मुझे तीसरा खम्बा ब्लॉग पर जाकर एक अच्छी सलाह और जानकारी प्राप्त हुई थी. धन के लिए जीवन नहीं किन्तु जीवन के लिए धन है. मुझे धन से अधिक मोह भी नहीं है. अगर मैं धन के लिए अपनी पत्रकारिता का प्रयोग करता. तब आज करोड़पति होता, मगर मुझे आज अपनी गरीबी पर संतोष है. मैं देश व समाजहित में अच्छे कार्य करके अपने जीवन की सार्थकता साबित करना चाहता हूँ और शायद कुछ अन्य लोग भी प्रेरणा लेकर देश व समाजहित में अच्छे कार्य करें. अगर आप उपरोक्त "पुस्तकालय" में बैठकर कुछ ज्ञान प्राप्त करलें और जागरूक हो जाए. तब इस "पुस्तकालय" को बनाने का उद्देश्य सार्थक हो जाएगा. इस "पुस्तकालय" में आप अनुसरणकर्त्ता बनकर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाकर मेरा आप समर्थन कर सकते हैं.
मैंने बहुत पहले ही अपने ब्लॉग "सिरफिरा-आजाद पंछी" और "रमेश कुमार सिरफिरा" पर अपने दोस्तों के ब्लॉग को पूरा मान-सम्मान देते हुए. अपने ब्लॉग में "सहयोगियों की ब्लॉग सूची" और "मेरे मित्रों के ब्लॉग" कालम बना दिया था और उसमें उनके ब्लोगों के लिंकों को शामिल कर दिया था.
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प्रकाशन कार्यालय में छोटा-सा पत्र-पत्रिकाओं का पुस्तकालय |
मैंने बिना किसी प्रकार की द्वेष भावना के मुझे जो भी ब्लॉग या लिंक अच्छे लगे उनको शामिल किया था. मेरे मन कभी यह विचार नहीं आया कि-उस फलाँ व्यक्ति के ब्लॉग का प्रचार होगा और फलाँ का नहीं या मुझे क्या पड़ी है, उसका फ्री में प्रचार करने की. कई ब्लोगों पर मुझे कुछ कमियां भी नज़र आई. तब बिना किसी द्वेष भावना के स्पष्टवादिता से लिखा भी इस स्थान पर यह सुधार किया जाना चाहिए. उसमें से कई ब्लोग्गर मेरी स्पष्टवादिता से खफा भी हो गए और कुछ जो अपने ब्लॉग को लेकर गंभीर थें, उन्होंने बहुत से सुधार भी किये. मेरे पास पिछले दिनों बहुत असभ्य भाषा में टिप्पणियाँ आई. तब मैंने उनके साथ वैसा ही व्यवहार नहीं करते हुए कहा कि-आप गुमनाम नाम से असभ्य भाषा में टिप्पणी करते हैं. आप स्वस्थ मानसिकता से तर्क-वितर्क करें. तब मैं आपसे स्वस्थ बहस करने के लिए तैयार हूँ और मेरी कमियों की निडर होकर आलोचनात्मक टिप्पणी करें. मुझे खुद अपनी कमी(गलती) दिखाई नहीं देंगी. जिस तरह से फूलों के साथ काँटों का होना स्वाभाविक है, ठीक उसी तरह अच्छाइयों के साथ बुराइयों का होना भी स्वाभाविक है. लेकिन हर मनुष्य में योग्यता है कि वो अपनी बुराइयों को जानकर उनको अच्छाइयों में बदलने का प्रयास कर सकता है. उसके बाद उन व्यक्तियों की टिप्पणियाँ अच्छी और बुरी सभ्य भाषा आ रही है और उनको मैं प्रकाशित भी कर रहा हूँ. उनके द्वारा गलतियों में समय-समय पर सुधार भी कर रहा हूँ, क्योंकि संत कबीर दास जी कहते हैं कि "निंदा करने वाले व्यक्ति को शत्रु न समझकर 'सच्चा मित्र' ही मानिए. उसे सदा अपनी समीप रखिए, यहाँ तक कि उसके लिए अपने आंगन में झोंपड़ी बनाकर उसके रहने की व्यवस्था कर दीजिए यानि उसके लिए सब सुविधायें जुड़ा दीजिए" इसका लाभ यह है कि-"निंदा करने वाला व्यक्ति पानी और साबुन के बिना ही आपके स्वभाव और चरित्र को धो-धोकर निर्मल बना देगा" तात्पर्य यह है कि "निंदा के भय से व्यक्ति सज़ग रहेगा, अच्छे काम करेगा और इस प्रकार उसका चरित्र अच्छा बना रहेगा"
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प्रकाशन कार्यालय में छोटा-सा कंप्यूटर विभाग जहाँ मैटर कम्बोज होता था. |
मुझे कई ब्लोग्गरों ने आलोचक समझकर अपने समीप ही नहीं आने दिया और मेरे नाम "सिरफिरा" के अनुरूप मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लिया. कोई झक्की कहता और कोई परेशान आत्मा. लेकिन इतना सब होने के बाद भी मैंने सभी ब्लोग्गरों को संदेश भेजकर कहा कि-अगर आपको समय मिले तो मेरे ब्लॉग "सिरफिरा-आजाद पंछी" और "रमेश कुमार सिरफिरा" पर अपने ब्लॉग का "सहयोगियों की ब्लॉग सूची" और "मेरे मित्रों के ब्लॉग" कालम में अवलोकन करें. सभी ब्लोग्गर लेखकों से विन्रम अनुरोध/सुझाव: अगर आप सभी भी अपने पंसदीदा ब्लोगों को अपने ब्लॉग पर एक कालम "सहयोगियों की ब्लॉग सूची" या "मेरे मित्रों के ब्लॉग" आदि के नाम से बनाकर दूसरों के ब्लोगों को प्रदर्शित करें. तब अन्य ब्लॉग लेखक/पाठकों को इसकी जानकारी प्राप्त हो जाएगी कि-किस ब्लॉग लेखक ने अपने ब्लॉग पर क्या महत्वपूर्ण सामग्री प्रकाशित की है? इससे पाठकों की संख्या अधिक होगी और सभी ब्लॉग लेखक एक ब्लॉग परिवार के रूप में जुड़ सकेंगे. आप इस सन्दर्भ में अपने विचारों से अवगत कराने की कृपया करें.
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प्रकाशन कार्यालय के बाहर लगा बोर्ड में प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक्स
मीडिया से जुड़ा हुआ होने का इशारा करता हुआ. |
मेरा इस संदर्भ में उद्देश्य मात्र यह था कि-ब्लॉग जगत प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया के विकल्प के रूप में उभरकर एक "पांचवां खम्बें"(कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है) के रूप में अपनी पहचान स्थापित करें. मैं प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया से जुड़ा हुआ होने के कारण उसकी चमक और चौंध से अच्छी तरह से वाफिक था कि कैसे समाचार पत्रों या चैनलों में स्थान और समय निर्धारित होता है? कैसे टी.आर.पी और प्रसार संख्या की रिर्पोट निर्धारित होती है? आज आम आदमी में प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया अपनी पहचान खो चूका है.
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सच लिखने हेतु हर पल मौत से लड़ना होता है |
अपने बारे में दोस्तों यह कह (अपने मुहँ मिठ्ठू बन रहा हूँ) सकता हूँ कि-शोषण की भट्टी में खुद को झोंककर समाचार प्राप्त करने के लिए जलता हूँ फिर उस पर अपने लिए और दूसरों के लिए महरम लगाने का एक बकवास से कार्य को लेखनी से अंजाम देता हूँ. आपका यह नाचीज़ दोस्त समाजहित में लेखन का कार्य करता है और कभी-कभी लेख की सच्चाई के लिए रंग-रूप बदलकर अनुभव प्राप्त करना पड़ता है. तब जाकर लेख का विषय पूरा होता है. इसलिए पत्रकारों के लिए कहा जाता है कि-रोज पैदा होते हैं और रोज मरते हैं. बाकी आप अपने विचारों से हमारे मस्तिक में ज्ञानरुपी ज्योत का प्रकाश करें.
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लेखन कार्य करते समय एकांत का माहौल चाहिए होता है. |
अपने बारे में एक वेबसाइट को अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान भेजने के बाद उसका यह कहना है कि-आप अपने पिछले जन्म में एक थिएटर कलाकार थे. आप कला के लिए जुनून अपने विचारों में स्वतंत्र है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं. यह पता नहीं कितना सच है, मगर अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ . मेरा बस यह कहना कि-आप आये हो, एक दिन लौटना भी होगा. फिर क्यों नहीं? तुम ऐसा करों तुम्हारे अच्छे कर्मों के कारण तुम्हें पूरी दुनियां हमेशा याद रखें. धन-दौलत कमाना कोई बड़ी बात नहीं, पुण्य/कर्म कमाना ही बड़ी बात है. हमारे देश के स्वार्थी नेता "राज-करने की नीति से कार्य करते हैं" और मेरी विचारधारा में "राजनीति" सेवा करने का मंच है. कबीरदास जी अपने एक दोहे में कहते हैं कि-"ऊँचे कुल में जन्म लेने से ही कोई ऊँचा नहीं हो जाता. इसके लिए हमारे कर्म भी ऊँचे होने चाहिए. यदि हमारा कुल ऊँचा है और हमारे कर्म ऊँचे नहीं है, तब हम सोने के उस घड़े के समान है. जिसमें शराब भरी होती है. श्रेष्ठ धातु के कारण सोने के घड़े की सब सराहना करेंगे.लेकिन यदि उसमें शराब भरी हो तब सभी अच्छे लोग उसकी निंदा करेंगे. इसी तरह से ऊँचे कुल की तो सभी सराहना करेंगे, लेकिन ऊँचे कुल का व्यक्ति गलत कार्य करेगा. तब उसकी निंदा ही करेंगे.
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जरूरत पड़ने पर अखबार भी स्वयं बेचना होता है,
क्योंकि सच बिकता नहीं, छुपा या दबा दिया जाता है. |
क्या पत्रकार केवल समाचार बेचने वाला है? नहीं. वह सिर भी बेचता है और संघर्ष भी करता है. उसके जिम्मे कर्त्तव्य लगाया गया है कि-वह अत्याचारी के अत्याचारों के विरुध्द आवाज उठाये. एक सच्चे और ईमानदार पत्रकार का कर्त्तव्य हैं, प्रजा के दुःख दूर करना, सरकार के अन्याय के विरुध्द आवाज उठाना, उसे सही परामर्श देना और वह न माने तो उसके विरुध्द संघर्ष करना. वह यह कर्त्तव्य नहीं निभाता है तो वह भी आम दुकानों की तरह एक दुकान है किसी ने सब्जी बेच ली और किसी ने खबर.
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कभी-कभी रूप बदलना भी जरुरी होता है |
इस ब्लॉग पर यह पहली और आखिरी पोस्ट है. इस पर नियमित रूप से कोई पोस्ट भी नहीं डाली जायेगी. इस पर समय के परिवर्तन अनुसार ब्लोगों और लिंकों को शामिल जरुर किया जाएगा. अगर आप मेरे अन्य ब्लॉग को पढ़ने के इच्छुक है. तब आप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-अगर आपको समय मिले तो कृपया करके मेरे "सिरफिरा-आजाद पंछी", "रमेश कुमार सिरफिरा", सच्चा दोस्त, आपकी शायरी, मुबारकबाद, आपको मुबारक हो, शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन, सच का सामना(आत्मकथा), तीर्थंकर महावीर स्वामी जी, शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय और शकुन्तला महिला कल्याण कोष, मानव सेवा एकता मंच एवं चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख (जिनपर कार्य चल रहा है) ब्लोगों का भी अवलोकन करें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे. हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं.
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कभी-कभी रूप बदलना
भी जरुरी हो जाता है |
कैमरा-तीसरी आँख वाला ब्लॉग एक-आध महीना लेट हो सकता लेकिन उस पर अपने लड़े दोनों चुनाव की प्रक्रिया और अनुभव डालने का प्रयास कर रहा हूँ.जिससे मार्च 2012 में दिल्ली नगर निगम के चुनाव होने है और मेरी दिली इच्छा है कि इस बार पहले ज्यादा निर्दलीय लोगों को चुनाव में खड़ा करने के लिए प्रेरित कर सकूँ. पिछली बार 11 लोगों की मदद की थी. जब आम-आदमी और अच्छे लोग राजनीती में नहीं आयेंगे. तब तक देश के बारें में अच्छा सोचना बेकार है. मेरे ब्लॉग से अगर लोगों को जानकारी मिल गई. तब शायद कुछ अन्य भी हौंसला दिखा सकें. मेरे अनुभव और संपत्ति की जानकारी देने से लोगों में एक नया संदेश भी जाएगा.
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कई बार आदमी अपने ही के हाथों से
इतनी गहरी चोट खाता है. फिर चाहकर
भी उभर नहीं पाता है. |
महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा, यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें. हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें
-निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:09868262751, 09910350461,011-28563826